ज्योतिषी तत्त्व: Elements of Astrology

Best Seller
FREE Delivery
$22
Quantity
Delivery Ships in 1-3 days
Item Code: NZA725
Author: पंण्डित पन्ना लाल ज्योतिष: Pandit Pannalal Jyotish
Publisher: General Book Depot
Language: Hindi
Pages: 223
Cover: Paperback
Other Details 8.5 inch X 5.5 inch
Weight 300 gm
Fully insured
Fully insured
Shipped to 153 countries
Shipped to 153 countries
More than 1M+ customers worldwide
More than 1M+ customers worldwide
100% Made in India
100% Made in India
23 years in business
23 years in business
Book Description

ज्योतिष तत्त्व

प्राचीनकालसे ही मनुष्य को अपने शुभाशुभ भविष्य को जानने की जिज्ञासा रही है। उसकी इसी प्रवृत्ति ने ज्योतिष विद्या को जन्म दिया। वास्तव मे ज्योतिष शास्त्र एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है, जो ईश्वरीय एवं शुद्ध प्राकृतिक नियमों पर आधारित है। प्राचीन मनीषियों ने अपनी दिव्य ज्ञान चक्षुओं एवं सतत सा धना द्वारा ग्रह-नक्षत्रों की प्रकृति, एवं प्रभाव का गहन अनुशीलन किया। जिसके फलस्वरुप हमें गणित एवं फलित ज्योतिष के सिद्धान्त प्राप्त हुए। ज्योतिष शास्त्र भूत भविष्य और वर्तमान की साकार कहानी है। प्रस्तुत पुस्तकमें ज्योनिष सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण प्रारम्भिक जानकारी, मूल भूत गणितीय एवं फलित सम्बन्धी सिद्धान्त सम्पूर्ण जन्मपत्री बनाने की सरल विधियां नक्षत्र ग्रहों एवं राशियों के सम्बन्ध में विस्तृत वर्णन, तिथि वारादि पंचांग परिचय नवग्रह स्पष्ट एवं भावस्पष्ट करना, चलित चक्र, नवांशादि षड्वर्ग लगाना तथा उसपर आधारित फलकथन करना, विंशोत्तरी महादशा, अन्तर्दशा. प्रत्यन्तरदशा सूक्ष्मदशा, प्राणदशा अष्टोतरी-योगिनी आदि दशाएं निकालने को मग्ल विधियांटदाहरण सहित बतलाई गई हैं इसकें अतिरिक्त चन्द्रस्पष्ट करने की सारिणीयां, भारत के प्रसिद्ध नगरों के अक्षांश-रेखांश एवं देशान्तर, गाचर ग्रह फल, गण्डान्त विचार आदि अनेक विषयों का समावश किया गया है। जिसके अनुशीलन से साधारण पठित व्यक्ति भी एक कुशल ज्योतिषी बन सकता हें। आशा है यह पुस्तक सभी वर्ग के लिए उपयोगी एवं संग्रहणीय होगी।

प्राक्कथन (भूमिका)

जयति सिन्धुरवदनो देवो यत्पादपंकज स्मरणम्

वासरमणिरिव तमसां राशीन्नाशयति विघ्नाम् ।।

स्वर्लोके विराजन्तं ज्योति: शास्त्रे विचक्षणं महर्षिभाव भावितम्

विश्व विख्यात राजपण्डितं प्रपितामहऽहं वन्दे देवीदयालु संज्ञकम् ।।

ज्योतिष जगत में भारतीय मनीषियों द्वारा रचित ज्योतिष सम्बन्धी सिद्धान्त एवं फलित गन्थों की कमी नहीं है, परन्तु अधिकांश ग्रन्थ विषय, शैली एवं रचना की दृष्टि से बहु- संस्कृतनिष्ठ एवं अनांनुक्रमिक होने से ज्योतिष के प्रारम्भिक विद्यार्थियों के लिए सुगमता से बोधगम्य नहीं होते। मेरी चिरकला से यह आकांक्षा थी कि ज्योतिष जैसे दुरूह्य विषय पर प्राचीन ग्रन्यों एवं अपने अनुभवों के अनुशीलन के पश्चात् ऐसी पुस्तक प्रणीत की जावे जो ज्योतिष के गणित एवं फलित-दोनों विषयों पर सुगम एवं उपयोगी हो सकें।

प्राचीनकाल से ही ज्योतिष शास्त्र का सम्बन्ध मानव, मानवीय सभ्यता एवं तत्सम्बन्धी इतिहास से अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है आदिकाल में केवल सूर्यादि ग्रहों एवं काल का बोध करवाने वाले शास्त्र को ही ज्योतिष शास्त्र माना जाता था-(ज्योतिषां सूर्यादि ग्रहाणां बोधक शास्त्रम्) परन्तु शनै:-शनै: मानवीय सभ्यता के विकास के साथ-साथ मनुष्य की बाह्य एवं आन्तरिक प्रवृत्तियों का अनुशीलन भी इसी शास्त्र के अन्तर्गत किया जाने लगा मनुष्य जीवन के प्रत्येक क्रियाकलाप-जैसे सुख-दुख, उन्नति-अवनति, इष्ट-अनिष्ट, भाग्योदयादि-सभी का समाधान 'ज्योतिष शास्त्र ' में ढूंढा जाने लगा

ज्योतिष कोई नया विज्ञान नहीं है और ही यह कोई नवीन आविष्कार है बल्कि अतीतकाल में यह एक अत्यन्त विकसित शास्त्र रहा है जिसके अनेक मौलिक सूत्र सभ्यता और इतिहास के थपेड़ों से कहीं बिखर गए थे। प्रस्तुत पुस्तक उन्हीं विकीर्ण सूत्रों को एक सूत्र में पिरोने की मेरी अल्प चेष्टा मात्र होगी।

भारतीय ज्ञान की पृष्ठ भूमि में ज्योतिष सम्भवत: सबसे पुराना विषय है। ऋग्वेद में 95 हजार वर्ष पूर्व ग्रह-नक्षत्र की स्थिति का वर्णन मिलता है। इसी आधार पर लोकमान्य तिलक ने ज्योतिष को इतने वर्ष के पूर्वकाल में इसकें अस्तित्व को स्वीकार किया है। वस्तुत: ज्योतिष एक वैज्ञानिक चिन्तन है, जो अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ अविच्छिन्न रूप से जुड़ा हुआ है। ज्योतिष शास्त्र की दृष्टि में सम्पूर्ण विश्व एक जीवन्त संरचना (Organic Unity) है। इस जगत में जो कुछ भी घटित हो रहा है अथवा भविष्य में घटित होगा, वह सापेक्षित है- अर्थात् प्रत्येक घटनाक्रम कारण कार्य रूप में किसी अन्य वस्तु पिण्ड से प्रभावित हो रहा है। भविष्य बिल्कुल अनिश्चित नहीं है बल्कि वह संश्लिष्ट रूप से अतीत और वर्तमान से जुड़ा हुआ है। ज्योतिष केवल ग्रह-नक्षत्रों आदि का अध्ययन मात्र नहीं, बल्कि यह मनुष्य और प्रकृति को अलग- अलग आयामों से जानने को प्रक्रिया है।

आधुनिक विज्ञान भी जब स्वीकार करने लगा है कि ग्रह नक्षत्रों आदि से मनुष्य जीवन निश्चित रूप से प्रभावित होता है परन्तु व्यक्तिगत रूप से कोई मनुष्य कितना प्रभावित होता है? इस सम्बन्ध में अभी कोई निश्चि वैज्ञानिक मान्यताएं प्रकट नहीं हुईं ज्योतिष क्य सम्बन्ध में अवश्य उत्तर देता है। परन्तु मनुष्य पर ग्रहों आदि के प्रभाव के सम्बन्ध में यह बात अवश्य ध्यान में रखनी चाहिए कि ग्रह-नक्षत्रादि सौर-पिण्ड मनुष्य जीवन के शुभाशुभ फलादेश के नियामक नहीं हैं, परन्तु सूचक हैं (Planets indicte & impel the future happening, they do not compel it) मनुष्य और प्राकृतिक पदार्थों के अणु- अणु का परिशीलन एवं विश्लेषण करना भी ज्योतिष शास्त्र का ध्येय है विश्व के समस्त क्रिया- कलापों को देशकाल एवं दिशा के तीन आयामों में स्वीकारते हुए हमारे पूर्वाचार्यों ने एक विराट काल पुरुष की कल्पना की है काल पुरुष के अन्तर्गत नवग्रहों एवं द्वादश राशियों की परिकल्पना की गई है। जैसे सूर्य को काल पुरुष की आत्मा, चन्द्रमा को मन, मंगल को सत्व, गुरु को ज्ञानादि का प्रतीक माना गया है। इस भांति शिरादि पर मेष राशि का आधिपात्य माना गया है।

(इनका विस्तृत विवेचन पुस्तक के भीतर किया गया है) ज्योतिष शास्त्र की उपादेयता के सम्बन्ध में किसी भी बुद्धिजीवी व्यक्ति को सन्देह नहीं होना चाहिए। जैसे कि पहले भी लिखा है कि यह शास्त्र एक सूचनात्मक शास्त्र है। इस शास्त्र के ज्ञान के द्वारा मनुष्य को शुभ या अशुभ काल, यश-अपयश, लाभ-हानि, उन्नति-अवनति, जन्म-मृत्यु भाग्योदयकाल आदि का ज्ञान हो सकता है। जैसे वर्षा आगमन की सूचना शीतवायु के प्रवाह से पूर्वत: ही मिल जाती है एवं जैसै मछलियों को समुद्रिक तूफान की पूर्वानुभूति हो जाती है, उसी भान्ति ज्योतिष आचार्यों द्वारा प्रणीत ज्योतिषीय सूत्रों से मनुष्य के अतीत, वर्तमान एवं भविष्य काल की सूचनाएं इस शास्त्र के अनुशीलन द्वारा ज्ञात की जा सकती हैं। मनुष्य के अनुकूल, प्रतिकूल समय का ज्ञान कराने वाला एकमात्र साधन ज्योतिष ही है। ज्योतिष शास्त्र का सम्बन्ध प्राय: सभी शास्त्रों के साथ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ा हुआ है। दर्शन शास्त्र, गणित शास्त्र, खगोल एवं भूगोल शास्त्र मंत्र शास्त्र, कृषि शास्त्र, आयुर्वेद आदि शास्त्रों के साथ तो ज्योतिष का प्रत्यक्ष सम्बन्ध मिलता है। अतएव इस शास्त्र की सर्वाधिक उपयोगिता यही है कि यह मानव जीवन के अनेक प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रहस्यों का विवेचन करता है और मानव जीवन लीला को प्रत्यक्ष रूप में रखे हुए दीपक की भान्ति प्रकट करता है व्यवहार के लिए अत्यन्त उपयोगी दिन. सप्ताह, पक्ष, मास, अयन, ऋतु सम्वतसर उत्सवों आदि का ज्ञान भी इसी शास्त्र द्वारा होता है काल के मुख्य पांच अंगों तिथि, वार, नक्षत्र, योग, करण का सम्पूर्ण वर्णन ज्योतिष के वार्षिक प्रकाशन पंचांग द्वारा करवाया जाता है पंचांग में ग्रहों के उदय अस्त, वक्री-मार्गी, राशि-परिवर्तन, नक्षत्र प्रवेश, चन्द्र-सृर्यग्रहण, धार्मिक पर्व, सामाजिक? उत्सव, महापुरुषों के जन्मदिन, वर्षा आदि का ज्ञान, विवाहादि शुभ मुहूर्त्त, राशि चक्र? सर्वार्थ सिद्धादि योगों तथा राजनीतिक भविष्यवाणियों का विशद वर्णन दिया रहता है। जिम कारण प्रत्येक हिन्दू धर्म-परायण व्यक्ति का इस शुद्ध गणित ग्रंथ (पंचांग) के प्रति श्रद्धावान होना स्वाभाविक ही है। भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति पर ज्योतिष शास्त्र का विशेष प्रभाव रहा है। पूर्वकाल से ही ज्योतिष सम्बन्ध के तीन विभाग किए गए हैं।

सिद्धान्त संहिता-होरारूपं स्कन्ध त्रयात्मकम्

वेदस्य निर्मलं चक्षु ज्योति: शास्त्रमनुत्तमम् ।।

सिद्धान्त ज्योतिष के अन्तर्गत नक्षत्रों एवं सूर्यादि ग्रहों की स्पष्ट गति स्थिति, अयन, योग, ग्रहण, ग्रहों के उदयास्तादि के विषयों का सैद्धान्तिक विवेचन दिया रहता है। यथा-सिद्धान्त शिरोमणि संहिता ग्रन्थों में ग्रहस्थितिवश भिन्न-भिन्न काल पर विभिन्न देशों पर पड़ने वाले शुभाशुभ प्रभावों का वर्णन जैसे-सुभिक्ष, दुर्भिक्ष, भूकम्प, अतिवर्षा, बाढ़, युद्ध, राज्य-क्रान्ति आदि का वर्णन रहता है। यथा-वृहत्संहिता, होरा शास्त्र-में जातक के जन्म समय, वर्ष, अयन, ऋतु मास, ग्रह, नक्षत्र, राशि आदि के आधार पर मनुष्य के सुख- दुख, लाभ-हानि आदि परिस्थितियों की सूचना मिलती रहती है। श्री पाराशरकृत होरा शास्त्र, वाराहमिहिर का बृहद्जातकम् आदि ग्रन्थ इसी क्षेत्र में आते हैं।

ज्योतिष तत्त्व-तीन अलग-अलग भागों में प्रकाशित की जा रही है प्रस्तुत प्रथम भाग में ज्योतिष के प्रारभ्कि इतिहास से लेकर ज्योतिष के विभिन्न अंगों, सृष्टिक्रम सौर मण्डल का वर्णन, काल विभाजन, पंचांग परिचय, तिथियों, नक्षत्रों, राशियों एवं ग्रहों सम्बन्धी विस्तृत जानकारी के साथ-साथ लग्न कुण्डली तैयार करने की सरल एवं सुगम प्रणालियां, राशियों एवं लग्नों के स्वोदयमान ज्ञात करना, नवग्रह स्पष्ट, भाव स्पष्टादि करना, चलित भाव चक्र, नवांशादि सप्तवर्गी की वृहद् जन्मपत्री निर्माण करने की सोदहरण विधियां, विंशोत्तरी, अष्टोतरी, योगिनी आदि दशाएं अन्तर्दशाएँ एवं प्रत्यन्तर्दशाएँ निकलाने की सरल विधियां उदाहरण सहित वर्णन की गई हैं। इनके अतिरिक्त ग्रहों के कालादि बल, शयनादि अवस्थाएं निकालने की विधियाँ एवं फल तथा अंत में जन्मपत्री द्वारा जातक के फलादेश कथन सम्बन्धी महत्वपूर्ण तथ्यों एवं दशाऽन्तर्दशाओं के फल का विस्तृत वर्णन किया गया है, जिनका आद्योपान्त पठन, मनन एवं अभ्यास करने के पश्चात् ज्योतिष का प्रारम्भिक विद्यार्थी सहज रूप से एक कुशल ज्योतिषी बन सकता है।

पुस्तक के इस नवीन संशोधित संस्करण में फलादेश में उपयोगी नियमों के अतिरिक्त संवत्सरों एवं ऋतुओं में जन्म का फल, चैत्रदि सौर मासों में जन्म फल, जन्म तिथि एवं सप्तवारों में जन्म का फल तथा सत्ताईस नक्षत्रों में जातक के जन्म का विस्तृत फलादेश संयोजित कर दिया गया है ताकि जिज्ञासु प्रारम्भिक विद्यार्थियों के मन में फलादेश सम्बन्धी अभिरूचियों को जागृत किया जा सकें।

पाठकों के लाभार्थ, सूर्यादि ग्रहों की अन्तरदशाओं में प्रत्यन्तर दशाएं प्रमुख नगरों के अक्षांश-रेखांश तथा जालन्धर से भारत के अन्य प्रसिद्ध नगरों के लग्नान्तर की सारणियों का समावेश भी कर दिया गया है।

यद्यपि ज्योतिष जैसे अत्यन्त गूढ़, विस्तृत एवं अगाध विषय को एक ही पुस्तक के अन्तर्गत कतिपय नियमों में आबद्ध करना प्राय सम्भव कार्य नहीं है तथापि अपनी अल्पसति एवं अपने दिवंगत पूज्य पण्डित देवी दयालु ज्योतिषी, पं. मोहन लाल दिवंगत पिता पं. चूनी लाल प्रभृति पूर्वजों के शुभाशीषों एवं प्रेरणा स्वरूप ' ज्योतिष तत्त्व ' का यह लघु प्रयास कहां तक सफल हो पाया है, इसका निर्णय तो स्वयं सुविज्ञ पाठकवृन्द ही कर पाएंगे इस पुस्तक की रचना में जिन ज्ञात एवं अज्ञात विद्वानों एवं ग्रन्यों का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग प्राप्त हुआ है, उन सबके प्रति मैं हृदय से आभारी हूं पुस्तक के लेखन-सम्पादन में असावधानीवश, यदि कहीं त्रुटि रह गई हो, तो सुविज्ञ पाठक कृपया यदि, अपनी अमूल्य सम्मति भेजने का कष्ट करेंगे तो, मैं उनका हृदय से आभारी रहूंगा, ताकि आगामी संस्करण में उनका संशोधन करके 'ज्योतिष तत्त्व' को जन साधारण के हितार्थ और भी अधिक उपयोगी बनाया जा सकें। प्रस्तुत नवीन संशोधित संस्करण में सूर्यादि ग्रहों की स्थिति एवं दृष्टियों के विषय में ओर अधिक वर्णन किया गया है।

स्खलनं गच्छत: क्वऽपि भवत्येव प्रमादत

हरान्ति दुर्जनारत्तत्र समादधति सज्जना ।।

 

विषय सूची -ज्योतिष तत्त्व

 

भूमिका

 

9-12

प्रथम भाग

ज्योतिष: उद्भव और विकास

12-15

 

सृष्टि क्रम और हमारा सौर मण्डल

16-19

द्वितीय भाग

काल विभाजन

20-21

 

सृष्टि की उत्पत्ति व चारों युगों का वर्णन

22-23

 

भारतीय वर्षमान पद्धति

24

 

अधिक मास और क्षयमास वर्णन

25

 

प्रभवादि 60 सम्वसरों का वर्णन

26-27

 

अयन, गोलार्द्ध एवं षड्ऋतु वर्णन

28-29

 

चैत्रादि मासों का जन्म फल

30

तृतीय भाग

पंचाँग परिचय

31

 

पंचाँग परिवर्तन करना

32

 

पक्ष में तिथियों का ज्ञान

33-35

 

ग्रहण विवरण

37

 

युगादि एवं मन्वादि तिथियाँ

39

 

विभिन्न तिथियों में जन्म का फल

41

 

वार क्रम

42

 

काल होरा, चक्र

43

 

सात वारों में जन्म का फल व वारों में मुहूर्त ज्ञान

44-45

चतुर्थ भाग

नक्षत्र परिचय

46

 

नक्षत्र स्वरूप व देवता ज्ञान

48-49

 

नक्षत्र द्वारा राश्यंशों का भोग्य काल जानना

50

 

आकाश मण्डल में नक्षत्रों की स्थिति

51

 

काल पुरुष के शरीर अंगों में नक्षत्र स्थिति

51-52

 

नक्षत्रों के स्वामी ग्रह व ग्रह दशा वर्ष

52

 

गण्डमूल नक्षत्र और उनका फल

53-54

 

तारा बल जाना

54

 

नक्षत्रों की ध्रुव, चरादि संज्ञा

55

 

सर्वार्थ सिद्ध नक्षत्र

56-57

 

नक्षत्र के चरणानुसार नाम रखना

57

 

27 नक्षत्रों में जन्म का फल

58-73

 

आनन्दादि 28 योग

73-74

 

विष्कम्भादि 27 योग एवं स्वामी

75

 

करण विचार

75-76

 

भद्रा विचार

77

पंचम भाग

राशि चक्र

78

 

बारह राशियों और उनके' स्वामी

79

 

राशियों का उदय

80

 

राशि एवं नक्षत्र चरण ज्ञात करना

80

 

नाम राशि एवं जन्म राशि

80-81

 

काल पुरुष और द्वादश राशियाँ

81-82

 

द्वादश राशियों का स्वरूप

82-86

 

राशियों का तत्त्वादि विचार

86

 

चर,स्थिर और शीर्षोदय राशियां

87

 

राशियों का उदयमान

88

 

सायन व निरयण राशि व अयनांश जानना

89-91

 

मेषादि राशियों का फलादेश

92

षष्ठ भाग

ग्रहों के स्वरूपादि का वर्णन

98-104

 

ग्रहों के विषय में कुछ वैज्ञानिक तथ्य

104-105

 

ग्रहों के विषय में विशिष्ट जानकारी

16

 

ग्रहों का राशियों में उच्च-नीचादि

107

 

ग्रहों का नैसर्गिक मैत्री-शत्रु

108

 

तात्कालिक मैत्री चक्र व पंचधा मैत्री चक्र

109

 

ग्रहों का दृष्टि ज्ञान

110

 

ग्रहों के गुण-स्वभावादि का वर्णन

111

 

ग्रहों का उदयास्त व दैनिक गति

112

 

ग्रहों के कारकत्व का ज्ञान

114

सप्तम भाग

इष्टकाल ज्ञात करना

114

 

भयात् और भभोग ज्ञात करना

115-117

 

नक्षत्र का चरण ज्ञात करना

118

 

जन्म कुण्डली ज्ञान

118

 

द्वादश भावों के नाम व पर्याय

119

 

जन्म कुण्डली में लग्न ज्ञात करना

120

 

राशियों व लग्नों का स्वदेशीय मान

120-121

 

पलभा एवं चरखण्ड बनाना

122-123

 

दिल्ली के लग्नों के स्वदेशीय मान

123

 

भारत के प्रसिद्ध नगरों के अक्षांश-रेखांश

125-127

 

सारिणी द्वारा लग्न स्पष्ट करना

128-129

 

जन्मकुण्डली बनाना-उदाहरण

130

 

ग्रह स्थापन करना

130

अष्टम भाग

नवग्रह स्पष्ट करना

131

 

दैनिक गति अनुसार ग्रहस्पष्ट करना

132

 

चन्द्रस्पष्ट करने की विधि

136-138

 

द्वादश भाव स्पष्ट करना

139

 

चलित भाव चक्र लगाना

142

नवम भाग

षड्वर्ग एवं सप्तवर्ग का फलादेश

144

 

षड्वर्ग एवं सप्तवर्ग बनाना

145

 

होरा एवं द्रेष्काणादि विचार

145-146

 

सप्तमांश एवं नवांश चक्र बनाना

147-148

 

द्वादशांश एवं त्रिशांश बनाना

149-150

 

सप्तवर्गी चक्र बनाना

151

 

पारिजातादि फल विचार

152

 

ग्रहों के आत्मादि कारक

152-153

 

कारकांश, स्वांश, पद-उपपद कुण्डलियां

153-54

दशम भाग

द्वादश भावों के नाम व फलादेश विचार

155-158

 

12 भावों में शरीर के अंगों का विचार

158-159

 

12 भावों में सूर्य की स्थिति से जन्म समय

159

 

भाव भावेश एवं कारकत्व सम्बन्धी विशेष

160

 

द्वादश भावों में कारकत्व का विचार

162

 

जन्म कुण्डली देखने की विधि

163

 

भाव-राशि अनुसार ग्रहों के प्रभाव

164-165

एकादश भाग

ग्रहों सम्बन्धी विशेष जानकारी

166

 

ग्रह और ज्ञानेन्द्रियां

167

 

ग्रहों का बलाबल विचार

168-169

 

ग्रहों की शयनादि अवस्थाएँ

171

 

ग्रहों की वक्री-मार्गी आदि गति

175

 

ग्रहों का शरीरांगों पर प्रभाव

177

 

ग्रहों द्वारा रोग विचार

178

 

ग्रह और व्यवसाय

179

 

ग्रहों का संक्रमण काल

180

 

ग्रहों का फल देने का समय

181

द्वादश भाग

विंशोत्तरी महादशा जानना

182

 

भुक्त- भोग्य द्वारा दशा निकालना

183

 

विंशोत्तरी महादशा चक्र

185

 

चन्द्र स्पष्ट द्वारा दशा ज्ञात करना

185-187

 

ग्रहों की अन्तर्दशाए निकालना

190-191

 

प्रत्यन्तर दशाएं निकालना

193

 

प्रत्यन्तर दशाओं की सारिणिया

194-201

 

सूक्ष्म दशा एवं प्राणदशा लगाना

202

 

अष्टोत्तरी दशा का ज्ञान

202

 

योगिनी दशाएं लगाने की विधि

205

 

योगिनी दशा में अन्तर्दशाएँ ज्ञात करना

207-208

 

दशाऽन्तर्दशा के फल सम्बन्धी नियम

208-209

 

सूर्यादि दशाओं के फलादेश

210-212

 

भावेश अनुसार विंशोत्तरी दशाफल

212-213

 

योगिनी दशाओं के फल

213

 

गोचर फल पद्धति

214-220

 

जन्मकुण्डली में विशेष योग

220-223

 

 

 

 

 

 

 

 

 

Frequently Asked Questions
  • Q. What locations do you deliver to ?
    A. Exotic India delivers orders to all countries having diplomatic relations with India.
  • Q. Do you offer free shipping ?
    A. Exotic India offers free shipping on all orders of value of $30 USD or more.
  • Q. Can I return the book?
    A. All returns must be postmarked within seven (7) days of the delivery date. All returned items must be in new and unused condition, with all original tags and labels attached. To know more please view our return policy
  • Q. Do you offer express shipping ?
    A. Yes, we do have a chargeable express shipping facility available. You can select express shipping while checking out on the website.
  • Q. I accidentally entered wrong delivery address, can I change the address ?
    A. Delivery addresses can only be changed only incase the order has not been shipped yet. Incase of an address change, you can reach us at help@exoticindia.com
  • Q. How do I track my order ?
    A. You can track your orders simply entering your order number through here or through your past orders if you are signed in on the website.
  • Q. How can I cancel an order ?
    A. An order can only be cancelled if it has not been shipped. To cancel an order, kindly reach out to us through help@exoticindia.com.
Add a review
Have A Question

For privacy concerns, please view our Privacy Policy

Book Categories