भोपाल, मध्यप्रदेश ही नहीं, वरन् देश के हृदयस्थल के रूप में जाना जाता है। इस नगर का नाम धारा नगरी के परमार नरेश राजा भोज (1010-1055 ई.) के नाम पर रखा गया है। उसने जब यहां बहने वाली नदियों पर दो पहाड़ियों के मध्य बांध बनाकर विशाल तालाब का निर्माण कराया और उस पर किला निर्मित कर भोजपाल बस्ती की नींव रखी।
भोपाल एवं आसपास के क्षेत्र के सर्वेक्षण में काफी संख्या में शैलाश्रय एवं शैलचित्र प्रकाश में आ चुके हैं, जिससे प्रागैतिहासिक मानव सभ्यता की जानकारी मिलती है। इस क्षेत्र से पाषाण उपकरण भोपाल, गोंदरमऊ, विलखिरिया, केरवाडेम, मनुआभान की टेकरी, एम.ए.सी.टी. पहाड़ी, धरमपुरी, जामुनखोह, फिरंगी आदि स्थानों से मिले हैं। सभ्यता के विकास की कड़ी में ताम्राश्मकाल का महत्वपूर्ण योगदान है। इस काल में मानव गुफा, कन्दराओं और यायावर जीवन को त्याग कर बस्तियों में रहने लगा और उसने मैदानी क्षेत्र में कृषि करना, सामूहिक जीवन विताना, वर्तन बनाना, मिट्टी के मकान बनाकर रहना प्रारंभ कर दिया था। इस सभ्यता में प्रमाण पिपल्यालोरका, गांगाखेड़ी, शहदकराड़, बूधोर आदि स्थानों से मिलते है) मिट्टी के पात्रों पर चित्रकारी एक कला का रूप धारण कर चुकी थी। इस क्षेत्र में पाये जाने वाले शैलाश्रय समूह श्यामला हिल्स, मनुजभान की टेकरी, लालघाटी, गांधी मेडिकल कॉलेज, धरमपुरी समूह, भदभदा, डिगडिगा, गणेशघाटी समूह, फिरंगी समूह, जामनुखोह, गर्गादरमऊ एवं बांसिया पाटेर से भी इस काल के चित्रांकन के प्रमाण मिले हैं। भोपाल जिले के अतिरिक्त आसपास के क्षेत्र के शैलाश्रय भी प्रकाश में आए हैं। इनमें भीमबैठका, रामछज्जा, पनगंवा, एस. बेल्ट, सलकनपुर पहाड़ी के शैलाश्रय, पचमढ़ी. चुरनागुण्डी, आदमगढ़, अहमदपुर इस संस्कृति की पुष्टि करते हैं।
ऐतिहासिक काल की जानकारी हमें इस क्षेत्र में अशोक के अभिलेख से होती है। पानगुराडिया, सांची, सतधारा के स्तूप, उत्तर कृष्ण मार्जित भाण्ड, प्राचीन मुद्राएं, उत्खनित स्थलों से प्राप्त पुरावशेषों से इस क्षेत्र के इतिहास के बारे में जानकारी शोधार्थियों एवं पर्यटकों को होती है।
मौर्य, शुंग, सातवाहन, कुषाण, शक क्षत्रप, गुप्त, प्रतिहार, परमार शासकों ने इस क्षेत्र पर शासन किया। सांची, सतधारा, उदयगिरी, विदिशा, बाग उमराव दूल्हा स्तम्भ, पानगुराड़िया आदि के अतिरिक्त पुरातत्वीय स्थल नान्दूर, निन्नौर, पिपल्यालोरका, सावतपुर, बेसनगर, नान्देर के उत्खननों से प्राप्त पुरावशेष इस क्षेत्र की प्राचीनता को प्रमाणित करते हैं।
ऐतिहासिक काल के मंदिर एवं मूर्तियाँ भी यह प्रमाणित करती हैं कि यहाँ की गुप्त, प्रतिहार, परमार कालीन स्थापत्य एवं मूर्तिकला भारतीय इतिहास के पटल पर अपनी छाप छोड़ती है। भोजपुर का शिव मंदिर, आशापुरी, विदिशा एवं सलकनपुर क्षेत्र की प्रतिमाएं एवं मंदिर परमारकला के अनुपम उदाहरण हैं।
मध्यकाल में सन. 1236 ई. में सुल्तान इल्तुतमिश ने भोपाल सहित समस्त मालवा पर अपना कब्जा कर लिया था। उसके बाद यहां दिल्ली के सुल्तानों का अधिकार रहा। फिर मुगल बादशाह अकबर के समय से सन् 1700 ई. तक इस क्षेत्र में किसी न किसी रूप में मुगल शासन रहा।
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